जौनपुर। क्या सुबह उठने के बाद आपकी आँखों में जलन होती है? सुबह उठने के बाद आपको सांस लेने मे दिक्कत होती है? हो सकता है आपको यह लगे कि यह सब आती हुई ठंड की निशानी है। फिर सोचने की बात है कि ठंड तो हर साल आती है लेकिन इस बार ऐसा क्या खास हो गया?
आज कल ऐसे प्रश्न पूछने पर आपको अक्सर ऐसे लोग मिल जाएंगे जो बताएंगे कि उन्हें बहुत दिनों से खासी आ रही है लेकिन बलगम या कफ नहीं निकल रहा है। कई बार तो खांसते-खांसते उलटी भी हो जा रही है। इसी के चलते इस बार की ठंड खास है। आंखों में जलन, सूखी खांसी, सांस लेने में तकलीफ–इन सबका कारण एलर्जिक रिनिटिस, कंजक्टिवाइटिस या एलर्जिक कफ है। चूंकी यह एलर्जिक है इसीलिए इतना साफ है कि यह किसी परजीवी के कारण नहीं हो रहा है। यह सिर्फ आसपास के वातावरण के कारण है। जैसे कि प्रदूषण के कण जिन्हें हम सस्पेंडेड पार्टिकुलेटेड मैटर (एसपीएम) कहते हैं। इनका आकार पांच माइक्रोमीटर से कम होता है। यह इतने छोटे होते हैं कि इन्हें नंगी आंखों से देखना मुश्किल होता है। यह चौराहों पर, ज्यादा आवागमन वाले रास्तों पर, वाहन से निकलने वाले धुएं, धूल के कणों, उद्योगों से निकलने वाले धुएं, ज़्यादा मात्रा मे धूल-मिट्टी के उड़ने, निर्माण कार्यों के चलते फैलने वाली धूल आदि के चलते हवा में तैरते रहते हैं और यह हमारी कोशिकाओं में गहरे मे चिपक जाते हैं। जब तक यह वहां मौजूद रहते हैं तब तक खांसी और सांस की दिक्कत होती है। ठंड के मौसम में वातावरण में दबाव बढ़़ जाता है। इसके चलते यह सूक्ष्म कण नीचे की तरफ आ जाते हैं और हम सांस के माध्यम से आसानी से अंदर ले लेते हैं और इस समस्या के शिकार हो जाते हैं।
इसके चलते बुजुर्गों खास कर क्रोनिक स्टैंडर्ड पल्मोनरी प्रोटोकॉल (सीओपीडी) या ब्रोनकिएल अस्थमा के मरीजों को बहुत ही ज्यादा दिक्कत होती है। सीओपीडी के मरीज अक्सर सांस लेने मे तकलीफ, खांसी, ज्यादा मात्रा में बलगम निकलना, चेहरे और हाथों का नीला पड़ना, ऑक्सीजन की कमी का सामना करते रहते हैं। जबकि ऐसी स्थितियों में उनकी असमय सांस फूलने लगती है। उन्हें हृदयाघात की आशंका बढ़ने लगती है। जिन बच्चों को दमा है उनके लिए यह प्रदूषित हवा काल के समान है। यदि कोई सांस का मरीज नहीं है तब भी यह प्रदूषण उतना ही नुकसान पहुंचाता है जितना सिगरेट का धुआं। यह प्रदूषित सूक्ष्म कण न चाहते हुए भी हमारे फेफड़ों तक पहुंच रहे हैं और इसके चलते फेफड़े काले पड़ रहे हैं।
इसकी रोकथाम के लिए ऐसी जगहों पर पानी का छिड़काव करना चाहिए। निर्माण वाली जगह को घेरना चाहिए। जो भी स्टैंडर्ड आपरेटिंग प्रोटोकॉल (एसओपी) है उनका पालन करना चाहिए। इससे बचाव के लिए कॉटन मास्क का उपयोग करना चाहिए। नाक और गले की सफाई के लिए जलनेति करना चाहिए। इम्युनिटी बढ़ाने के लिए विटामिन सी लेना चाहिए। सांस फूलने जैसी आपात स्थिति में डेरीफाइलिन या सलबुटामोल दवाएं उपयोगी साबित हो सकती हैं लेकिन बिना चिकित्सिकीय सलाह लेना उचित नहीं होगा।