जौनपुर। वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय परिसर स्थित प्रोफेसर राजेंद्र सिंह (रज्जू भैया) संस्थान के भू एवं ग्रहीय विज्ञान विभाग में देश के प्रतिष्ठित संस्थानों के भू, पुरातत्त्व एवं पुरा वनस्पति वैज्ञानिकों की बैठक हुई। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की ओर से प्रायोजित इंस्टीट्यूट ऑफ़ एमिनांस परियोजना में एक बहु-विषयक शोध पर चर्चा हुई।
प्रो. पुष्प लता सिंह ने कहा कि इस शोध परियोजना में घाघरा-गोमती दोआब की विलुप्त नदियों का भू- पुरातत्वीय अध्ययन किया जायेगा। उन्होंने बताया कि घाघरा-गोमती दोआब क्षेत्र में कई निष्क्रिय नदियां और धाराएं हैं जो कि पूरी तरह से तलछट से भर चुकी हैं। इनमें जल का प्रवाह लंबे समय से बंद है। वर्तमान में ऐसी नदियां छोटी-बड़ी झीलों के रूप में मौजूद हैं। पुरातत्त्व सर्वेक्षणों एवं अध्ययनों के अनुसार इन छोटी नदियों और झीलों के किनारे मानव सभ्यता के इतिहास के प्रमाण मिलते है। इस शोध के तहत भूविज्ञान और पुरातत्व विज्ञान की तकनीकों और विषय-वस्तु का उपयोग कर यह जानने का प्रयास किया जायेगा कि कब और क्यों यह नदियां मरने के कगार पर आ गई। इनसे आस-पास रह रही मानव सभ्यता पर क्या प्रभाव पड़ा।
डा. आलोक कुमार ने कहा कि इस शोध में विभिन्न संस्थानों के आपसी सहयोग से झीलों की तलछट कोर का कालानुक्रमिक अध्ययन कर गंगा के मैदानी क्षेत्रों, विशेषकर घाघरा-गोमती दोआब में पिछले कुछ हजार वर्षों से हो रही भूवैज्ञानिक, जलवायु एवं पुरातात्विक गतिविधियों तथा उनके बीच के परस्पर संबंधों को समझने का प्रयास किया जायेगा।
कुलपति प्रो. वंदना सिंह ने कहा कि जौनपुर के लिए यह शोध बहुत ही महत्वपूर्ण होगा। उन्होंने शोध टीम के सदस्यों से चर्चा की। रज्जू भैया संस्थान के निदेशक प्रोफेसर प्रमोद कुमार यादव ने सभी का स्वागत किया। इस शोध कार्य में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, बीरबल साहनी पुरा विज्ञान संस्थान लखनऊ तथा रज्जू भैया संस्थान, पूर्वांचल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के शामिल होने पर भू एवं ग्रहीय विज्ञान के विभागाध्यक्ष डा नीरज अवस्थी ने धन्यवाद दिया । इस बैठक में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की प्राचीन इतिहास विभाग की प्रो. पुष्पलता सिंह, भौमिकी विभाग के डा. आलोक कुमार, पूर्वांचल विश्वविद्यालय भू एवं ग्रहीय विज्ञान के विभागाध्यक्ष डा. नीरज अवस्थी, बीरबल साहनी पुरा विज्ञान संस्थान लखनऊ की युवा वैज्ञानिक संध्या मिश्रा, सविता अवस्थी तथा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और पूर्वांचल विश्वविद्यालय के शोधार्थी शामिल हुए ।