जौनपुर। रूस-युक्रेन युद्ध तथा इजरायल-फिलिस्तीन विवाद का असर पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों पर देखने को मिला। वहीं पेट्रोलियम पदार्थों की ज्यादा उपयोगिता से पर्यावरण को काफी क्षति पहुंच चुकी है। वातावरण में बढ़ती
क्लोरोफ्लोरो कार्बन की मात्रा को इसी का नतीजा माना जा रहा है। इसका नतीजा है कि वैज्ञानिक ईंधन के तौर ऐसे विकल्प तलाशने लगे हैं जो पर्यावरण को क्षति नहीं पहुंचाएं, साथ ही दूसरे देशों पर निर्भरता भी घटाएं।
इस
दिशा में पूर्वांचल विश्विविद्यालय के वैज्ञानिक भी लगे हुए हैं। उन्होंने हाइड्रोजन एनर्जी की दिशा में अच्छा काम किया है। उनकी कोशिशें सफल हुईं तो बहुत कम कीमत पर हाइड्रोजन एनर्जी के माध्यम से गाड़ियां दौड़ती दिखाई देंगी तथा कल-कारखानों में भी डीजल-पेट्रोल की जगह हाइड्रोजन एनर्जी का उपयोग होता दिखेगा।
ग्रीन हाइड्रोजन का सबसे अच्छा स्रोत पानी है। इलेक्ट्रोकेमिकल प्रक्रिया के माध्यम से उत्प्रेरक सतह पर पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजित किया जा सकता है। इसे पानी विश्लेषण की अभिक्रिया (Water
spilitting reaction) कहते हैं। पानी (H2O) को तोड़ने के लिए सबसे अच्छा उत्प्रेरक प्लैटिनम को माना जाता है। यह बहुत ही महंगा होता है और आसानी से नहीं मिलता है। इस प्रकार हाइड्रोजन उत्पन्न करने के लिए
प्लैटिनम उत्प्रेरित जल विभाजन प्रतिक्रिया पारंपरिक जीवाश्म ईंधन या नवीकरणीय ऊर्जा के अन्य स्रोतों के
मुकाबले व्यावसायिक रूप से प्रतिस्पर्धी नहीं है।
ग्रीन हाइड्रोजन पर काम कर रहे पूर्वांचल विश्वविद्यालय में सेंटर फार नैनो साइंस एंड टेक्नोलॉजी के साइंटिस्ट डॉ काजल कुमार डे और उनके सहयोगी उत्प्रेरक के तौर पर प्लैटिनम की जगह ऐसे पदार्थ की तलाश कर रहे थे जो सस्ता हो, आसानी से बन जाए, स्थिर (stable) हो तथा ज्यादा दिन तक चल सके । ऐसे पदार्थ का उत्प्रेरक के रूप में उपयोग करना व्यावसायिक तौर पर ज्यादा फायदेमंद होता। काफी शोध के बाद उन्होंने पाया कि वैनेडियम ऑक्साइड-आधारित उत्प्रेरक में भविष्य में प्लैटिनम की जगह लेने की क्षमता है। उनके शोध के दौरान वैनेडियम ऑक्साइड उत्प्रेरक ने अच्छे परिणाम दिए। व्यावसायिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो इससे कीमत इतना कम किया जा सकता है कि बड़े पैमाने पर उपयोग करना करना भी आसान हो जायेगा |
बाजार में एक ग्राम प्लैटिनम की कीमत मोटे तौर पर 2,500 रुपए के आसपास ठहरती है जबकि एक ग्राम वैनेडियम आक्साइड को मौटे तौर पर 100 रुपए के अंदर ही बना सकते हैं। एक तरह से वैनेडियम आक्साइड का उपयोग करने से कीमतें 96 प्रतिशत तक कम हो गईं। अभी तक के शोध में जो वैनेडियम आक्साइड बना है उसकी स्टैबिलिटी (ज्यादा समय तक उपयोगिता) तथा ऐक्टिविटी रेस्पॉन्स भी जबरदस्त है।
डॉ काजल कुमार डे कहते हैं कि जिस पर सबसे ज्यादा सुधार किए जाने की जरूरत है, वह है ओवर पोटेंशियल की। इसमें उन्हें अभी 10 से 15 प्रतिशत तक और सुधार करना है। इतना सुधार कर लेने के बाद व्यावसायिक हित में इसका ज्यादा उपयोग किया जा सकेगा। इससे हाइड्रोजन एनर्जी की कीमतें कम हो
जाएंगी। ज्यादा समय तक ग्रीन हाइड्रोजन एनर्जी का उपयोग कर सकेंगे। इसलिए ओवर पोटेंशियल जितना
ज्यादा घटा सकेंगे उतना ज्यादा अच्छा रहेगा।
क्या है प्रक्रिया: पानी (H2O) पानी के अणुओं को विभाजित करने पर वह (H2) हाइड्रोजन और ऑक्सीजन (O2) में विभाजित होता है। इसमें से हाइड्रोजन को अलग करने के बाद एक ईंधन कोशिका (fuel cell) में ईंधन के रूप
में उपयोग करते हैं। इसका फायदा यह होता है कि जब-जब हाइड्रोजन जलता है तो फिर से पानी बनता है जिस पानी से फिर से हाइड्रोजन बना सकते हैं। यह प्रक्रिया लंबे समय तक चल सकेगी। इस हाइड्रोजन ईंधन
की एनजी डेंसिटी (ऊर्जा घनत्व) फासिल फ्यूल (पेट्रोलियम पदार्थों) से कई गुना ज्यादा होती है।
जापान में टोयोटा तथा होंडा, हुंडई और बीएमडब्ल्यू जैसी वाहन निर्माता कंपनियां लगातार इस पर काम कर रह है।
धन्यवाद.. वरुणा प्रवाह मीडिया को जिनके इस अथक प्रयास के माध्यम से इतनी महत्व पूर्ण जानकारी हम सभी को उपलब्ध हो रही है … वरुणा प्रवाह के संस्थापक. मीडिया प्रभारी एवम् पूरी टीम को.।।। हृदय से साधुवाद ।
आपका न्यूज चैनल प्रसिद्धि के शिखर को छुए ऐसी हमारी शुभकामना एवम आशीष है।
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