अभी तक हमने भारत के सीमा क्षेत्र में स्थित स्थानों के नाम बदलते, गलवान और लद्दाख में घुसपैठ करते, यहां तक कि दौलत ओल्डी बेग में काफी दिनों तक रहने की वजह से चीन को सुर्खियां बटोरते देखा है। इन स्थितियों में चीनी आक्रामक रहे और भारतीय समयानुकूल व्यवहार करते रहे।
वहीं अब स्थितियां बदल रहीं हैं। भारत भी उन्हीं की नकल कर जैसे को तैसा जवाब देने के मूड में है। वह भी चीनी कब्जे में मौजूद तिब्बत के 30 स्थानों के नाम बदलने वाला है। इसके साथ ही एक घटना इसमें सोने पर सुहागा की तरह काम कर रही है। अमेरिकी प्रतिनिधि सभा ने एक अधिनियम पारित किया है। इसमें चीन से दलाई लामा और अन्य तिब्बती नेताओं के साथ तिब्बत की स्थिति और शासन पर चल रहे विवाद का शांतिपूर्ण ढंग से हल करने का आग्रह किया है। इसे ‘द रिजॉल्व तिब्बत एक्ट’ के रूप में भी जाना जाता है। इस अधिनियम के बाद अमेरिकी कांग्रेस का एक प्रतिनिधिमंडल मंडल धर्मशाला पहुंच गया है। इसमें माइकल मैककॉल, नैन्सी पेलोसी भी हैं। इस बिल को अमेरिका की दोनों बड़ी पार्टियों का समर्थन है। माइकल मैककॉल रिपब्लिकन हैं जबकि नैन्सी पलोसी डेमोक्रेटिक हैं। माइकल मैककाल ने कहा कि यह बिल दर्शाता है कि अमेरिका तिब्बत के साथ खड़ा है। प्रतिनिधिमंडल ने तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा से उनके आवास पर मुलाकात की।
‘द रिजॉल्व तिब्बत एक्ट’ तथा अमेरिकी प्रतिनिधि मंडल के धर्मशाला पहुंचने से चीन को मिर्ची लगी है और उसने अपनी नाराज़गी का इजहार किया है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने अमेरिका से दलाई लामा की चीन विरोधी गतिविधियों को पहचानने तथा दुनिया को गलत संदेश भेजना बंद करने के लिए कहा है। उन्होंने कहा है कि दलाई लामा धार्मिक व्यक्ति नहीं हैं। वह धर्म की आड़ में चीन विरोधी अलगाववादी गतिविधियों में लिप्त रहने वाले व्यक्ति हैं। दलाई लामा एक निर्वासित राजनीतिज्ञ हैं।
अब जैसे-जैसे चीन आक्रामक होगा, भारत और अमेरिका उसकी इसी कमजोर नस (चीन के कब्जे वाले 30 तिब्बती क्षेत्रों के नाम तथा ‘द रिजॉल्व तिब्बत एक्ट’) के माध्यम से उसका इलाज करने की कोशिश करेंगे। यह तो सिक्के का एक पहलू है जो देखने में अच्छा तथा अपने पक्ष में दिख रहा है।
सिक्के का दूसरा पहलू भी है जिसमें अमेरिका का वह चेहरा दिख रहा है जो अमेरिका अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने के लिए इस्तेमाल करता है। भारत का मोस्ट वांटेड तथा अलगाववादी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू अमेरिका में रहता है और अमेरिका के लिए खजाने के तौर पर काम कर रहा है। इसके दम पर वह भारत के साथ तोलमोल की भूमिका में है।
अब यहां समझने की बात है कि पांच-छह महीने पहले दुनिया के कोने-कोने से भारत के खिलाफ काम करने वाले मारे जा रहे थे। मारने में अज्ञात व्यक्ति का नाम आ रहा था लेकिन अमेरिका और कनाडा ने कहना शुरू किया कि वह भारत ही है जो लोगों को मरवा रहा है। इस दौरान अमेरिका ने मरवाने वालों में एक नाम निखिल गुप्ता का उजागर किया। पन्नू को मारने के आरोप में निखिल गुप्ता को यूरोपीय देश चेक रिपब्लिक से गिरफ्तार किया गया। उसे अमेरिका की कोर्ट में पेश किया गया है। जो आरोप उस पर लगे हैं उसके अनुसार निखिल को 10 साल की सजा मिल सकती है।
आरोप है कि जून 2023 में जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अमेरिका जा रहे थे तभी पन्नू को मारने की साज़िश की गई थी, क्योंकि पन्नू प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मारने की धमकियां दे रहा था। कहा गया कि भारत ने किसी कांट्रेक्ट किलर को पन्नू को खत्म करने की जिम्मेदारी दी है। इसकी जानकारी अमेरिका को हो गई थी। अमेरिका ने सऊदी अरब के जेद्दा में एनएसए स्तर की वार्ता में यह बात उठाई थी। फाइनेंशियल टाइम्स में खबर छपने के बाद यह जानकारी आमलोगों को भी हो गई। इसी से पता चला था कि भारत के आतंकी तथा अमेरिका की नागरिकता ले चुके पन्नू को मारने वाले के बारे में अमेरिका ने जानकारी जुटा ली है। अमेरिका ने साफ-साफ कह दिया है कि आप मेरी धरती पर मेरे नागरिक को नहीं मार सकते। हालांकि वह भारत के खिलाफ क्या कहता है इससे अमेरिका अपना कोई लेना-देना नहीं समझता है। अमेरिका के खिलाफ ओसामा बिन लादेन कुछ कहता है तो उसे दिक्कत होने लगती है। यदि अमेरिका में बैठकर कोई दुनिया के लिए कुछ कहता है तो इसे अमेरिका लोकतंत्र में अभिव्यक्त की आजादी मानता है। वहीं अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर जब आईएसआईएस के आतंकियों ने टेप रिकॉर्ड भेजा था तो उससे अमेरिका घबरा गया था। अमेरिका के इस दोहरे रवैए को दुनिया बार-बार देख चुकी है लेकिन इस समय वह इस दोहरे रवैए का झटका भारत को देने की फिराक में है।
अब भारत किसी के दबाव में आने वाला देश नहीं रह गया है। ज्यादा संभावना है कि जिसे अमेरिका खलनायक के तौर पर पेश करेगा, देश की जनता उसे हीरो बना कर आंखों पर बिठा लेगी। अब अमेरिका के एनएसए तथा अपने अजित डोवाल के समकक्ष जेक सुलेवान भारत आए हैं। माना जा रहा है कि वह इसी मामले में भारत आए हैं। अमेरिका ने आरोप लगाया है कि निखिल गुप्ता पन्नू को मारने की योजना बना रहा था। उसे भारत ने भेजा है। जानकार समझ रहे हैं कि निखिल के माध्यम से और लोगों पर पन्नू की हत्या के प्रयास में शामिल होने का आरोप लगाकर भारत से तोलमोल करेगा। ऐसी चर्चा है कि अमेरिका की बात नहीं मानने पर वह निखिल के माध्यम से और लोगों के नाम उजागर कर दुनिया में इसका ढिंढोरा पीट कर भारत को बदनाम करने और भारत पर कार्रवाई करने की धमकी देगा। यह आशंका रूस ने भी जताई है।
इसके साथ ही यह समझना भी जरूरी है कि लंबे समय से अमेरिका भारत को अपने पक्ष में करने का बहुत प्रयास कर रहा है लेकिन सभी फेल हुए हैं। प्रलोभन से पक्ष में नहीं कर पाने की वजह से धमकी देने पर आ रहा है। अमेरिका ने भारत को चीन के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए उसे क्वाड का सदस्य बनाया। बावजूद इसके भारत ने चीन के साथ व्यापार में सारे रिकॉर्ड तोड़ दिये। 13 से 15 जून तक इटली में आयोजित जी-7 की बैठक में भी भारत से युक्रेन के पक्ष में साथ लाने की कोशिश की गई और उसके बाद स्विट्जरलैंड में 16 जून को आयोजित पीस समिट में भी ऐसे ही प्रयास हुए। भारत ने पीस समिट के निर्णयों से यह कहते हुए दूरी बना ली कि जब तक दोनों पक्ष आमने-सामने नहीं होंगे ऐसी पीस समिट का कोई फायदा नहीं होगा। भारत के साथ ही ब्रिक्स के सारे देश इस निर्णय के खिलाफ हो गये। भारत रूस और युक्रेन दोनों को लेकर डिप्लोमेसी और डायलॉग का पक्षधर है। इसलिए रूस के नहीं रहने पर लिए जाने वाले निर्णयों से उसने दूरी बना ली। कुछ ऐसा ही काम सऊदी अरब ने भी किया है। वह अमेरिका के साथ हुए पेट्रो डालर समझौते से अलग हो गया है। ऐसी स्थिति में अमेरिका जियो पालिटिक्स में खुद को असम्मानित महसूस कर रहा है।
इसके अलावा इजरायल-फिलिस्तीन विवाद में भी भारत का स्टैंड एकदम अलग रहा। इजरायल का मित्र होते हुए भी वह फिलिस्तीन को बचाए रखना चाहता है। इसलिए टू नेशन थियरी का पक्षधर है। इसका अलावा अमेरिका को नापसंद ईरान के साथ भारत चाबहार समझौता कर चुका है। यह सब इतने सारे अंतरराष्ट्रीय अपमान हैं कि अमेरिका अब निखिल गुप्ता के सहारे भारत को दबाने के प्रयास में है।
अमेरिका में निखिल के खिलाफ जो चार्जशीट दी गई है उसमें एक व्यक्ति सीसी-1 है। इसे भारतीय अधिकारी बताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि वह भारत की सुरक्षा बलों का शीर्ष अधिकारी है। उसने ही निखिल को अमेरिका भेजने और पन्नू को मारने का निर्देश दिया है। इस सीसी-1 का नाम उजागर करने के नाम पर ही अमेरिका भारत को दबाव में ले रहा है। अमेरिका का कहना है कि उसके पास सीसी-1 का डिटेल है। सीसी-1 के बारे में जिस तरह की रूपरेखा दी जा रही है उससे एनएसए, रा चीफ, आईबी चीफ जैसे किसी बड़े जिम्मेदार पद को बदनाम करने की कोशिश दिख रही है। महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या भारत इस सीसी-1 का नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर अमेरिका की बात मान लेगा?