लखनऊ, 27 दिसम्बर 2024
राष्ट्रीय फ़ाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम के तहत स्वास्थ्य विभाग के तत्वावधान और स्वयंसेवी संस्था सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च(सीफॉर), पाथ और प्रोजेक्ट कंसर्न इंटरनेशनल(पीसीआई) के सहयोग से शुक्रवार को गोसाईंगंज सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र(सीएचसी) पर अभिमुखीकरण कार्यक्रम आयोजित हुआ जिसमें रोगी हित धारक मंच(पीएसपी) को फ़ाइलेरिया रोग एवं रुग्णता प्रबन्धन तथा दिव्यांगता उपचार (एमएमडीपी) पर प्रशिक्षण दिया गया | पीएसपी स्वास्थ्य कार्यकर्ता, स्थानीय स्वयंसेवक, फ़ाइलेरिया रोगी, पंचायत सदस्य और कोटेदार से मिलकर बनता है और यह सभी एक मंच साझा करते हैं जहाँ पर फ़ाइलेरिया के संक्रमण, पहचान, उपचार और प्रबन्धन पर खुलकर चर्चा होती है | इसके सदस्य समुदाय को फ़ाइलेरिया के बारे में जागरूक करते हैं व सर्वजन दवा सेवन के तहत फ़ाइलेरिया रोधी दवा का सेवन करने के लिए प्रेरित करते हैं |
इस मौके पर सीएचसी अधीक्षक डा. सुरेश पांडे ने बताया कि फाइलेरिया को हाथीपाँव भी कहते हैं जो कि लाइलाज है और मच्छर के काटने से होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के अनुसार फाइलेरिया, दुनिया भर में दीर्घकालिक दिव्यांगता के प्रमुख कारणों में से एक है। आमतौर पर बचपन में होने वाला यह संक्रमण लिम्फैटिक सिस्टम को नुकसान पहुंचाता है और अगर इससे बचाव न किया जाए तो इससे शारीरिक अंगों में असामान्य सूजन होती है। फाइलेरिया के कारण हाइड्रोसील (अंडकोष की थैली में सूजन), लिम्फेडेमा (अंगों की सूजन) व काइलूरिया (दूधिया सफेद पेशाब) जैसी बीमारियाँ होती है | जिसके कारण आजीविका व काम करने की क्षमता भी प्रभावित होती है।
उन्होंने फ़ाइलेरिया के संक्रमण के बारे में विस्तार से बताया कि किसी भी व्यक्ति को संक्रमण के पश्चात् बीमारी होने में पांच से 15 वर्ष लग सकते हैं | यदि हम इन लक्षणों को पहचान लें और समय से जांच कराकर इलाज करें तो हम इस बीमारी को बढ़ने से रोक सकते हैं | फाइलेरिया की जाँच रात के समय होती है | जांच के लिए रक्त की स्लाइड रात में बनायी जाती है क्योंकि इसके परजीवी दिन के समय रक्त में सुप्तावस्था में होते हैं और रात के समय सक्रिय हो जाते हैं |
सर्वजन दवा सेवन यानि मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एमडीए) के तहत पाँच सालों तथा आईडीए(आइवरमेक्टिन, डाईइथाइलकार्बामजीन और एल्बेंडाजोल) के तहत लगातार तीन सालों तक साल में एक बार दवा का सेवन करने से इस बीमारी से बचा जा सकता है | इसलिए जब भी आशा और आंगनबाड़ी फाइलेरिया की दवा का सेवन कराने आयें तो दवा का सेवन जरूर करें | यह दवाएं फाइलेरिया के परजीवियों को तो मारती ही हैं साथ में पेट के अन्य कीड़ों , खुजली और जूं के खात्मे में भी मदद करती हैं |
मलेरिया अधिकारी अर्चना मिश्रा ने बताया कि दो साल से कम आयु के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और गंभीर रोगों से ग्रसित व्यक्तियों को छोड़कर सभी को इन दवाओं का सेवन करना चाहिए |फ़ाइलेरियारोधी दवा के सेवन के बाद कभी-कभी सिर में दर्द, शरीर में दर्द, बुखार, उल्टी तथा बदन पर चकत्ते एवं खुजली देखने को मिलती है लेकिन इससे घबराने की जरूरत नहीं है | मरते हुए परजीवियों के प्रतिक्रियास्वरुप यह होता है जो कि आमतौर पर स्वतः ठीक हो जाते हैं |
इसका केवल प्रबन्धन किया जा सकता है | नियमित व्यायाम और फ़ाइलेरिया प्रभावित अंगों की देखभाल से इस बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है | उन्होंने उपस्थित फ़ाइलेरिया रोगियों को प्रभवित अंगों की नियमति देख रेख करने और व्यायाम के तरीके भी बताये |
वरिष्ठ मलेरिया निरीक्षक बी.के.गौतम ने बताया कि मच्छर गन्दी जगह पर पनपते हैं | इसलिए हमें अपने घर और आस-पास मच्छरजनित परिस्थितियां नहीं उत्पन्न करनी चाहिए| साफ़ सफाई रखें, फुल आस्तीन के कपड़े पहने, मच्छरदानी का उपयोग करें, मच्छररोधी क्रीम लगायें और दरवाज़ों और खिड़कियों में जाली का उपयोग करें ताकि मच्छर घर में न प्रवेश करें | रुके हुए पानी में कैरोसिन या जले हुए मोबिल आयल की कुछ बूंदें डाल दें |
इस अवसर पर चार फ़ाइलेरिया रोगियों टिन्ना, अर्चना, सूरज सिंह और फूलचन्द्र को एमएमडीपी किट वितरित की गयी |
इस अवसर पर स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी लक्ष्मी नारायण, बीसीपीएम सरिता, 12 सीएचओ, छह आशा संगिनी, 24 एएनएम, एआरओ दीपक मौर्या, हेल्थ सुपरवाइजर अजय कुमार, एच बी सिंह, सीफॉर, पाथ और पीसीआई के प्रतिनिधि मौजूद रहे |