जौनपुर। कल तक जौनपुर में बतौर बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) प्रत्याशी प्रचार कर रहीं श्रीकला धनंजय का पार्टी ने टिकट काट दिया है। इसके लिए जहां बीएसपी उनके चुनाव लड़ने से इनकार करने की बात कह रही है। वहीं धनंजय सिंह टिकट काटने के लिए बीएसपी पर धोखा देने का आरोप लगा रहे हैं। इसके समानांतर ही चल रहीं कुछ स्थितियां कुछ अलग तरह की खिचड़ी पकने की ओर इशारा कर रही हैं। इसे देखकर ऐसा लगता है जो दिख रहा है, वह हकीकत नहीं है। जो हकीकत है, वह पर्दे के पीछे है। ऐसी स्थितियों में ही सीआईडी सीरियल में कहा गया था कि ‘कुछ तो गड़बड़ है दया।’
इसमें कोई दो राय नहीं है कि जौनपुर में आमलोगों के दिलों में जो हैसियत धनंजय सिंह की वह उनके सामने खड़े किसी प्रत्याशी की नहीं है। इसी के दम पर वह चुनावी ताल ठोक रहे थे। इनके चुनाव लड़ने का सबसे बड़ा प्रभाव भाजपा प्रत्याशी कृपा शंकर सिंह पर ही पड़ता और भाजपा के मिशन 400 को पलीता लगाता। टिकट कटने के पीछे चार थ्योरी काम कर रही हैं जिसमें से दो का जिक्र मैंने शुरुआत में ही कर दिया है।
बसपा के पक्ष का विश्लेषण करने पर उनकी बातों की पुष्टि नहीं हो पाती है क्योंकि यदि उसने धनंजय सिंह के चुनाव लड़ने से इनकार करने पर टिकट काटा है तो बाकी जगहों के टिकट काटने में भी प्रत्याशियों के इनकार करने की ही भूमिका है तो इसका उत्तर नहीं में ही मिलेगा। न ही वहां पर टिकट कटने को लेकर प्रत्याशी इतने मुखर है। इस बीच बसपा सुप्रीमो मायावती अपने भतीजे आकाश आनंद के राजनैतिक पर कुतर चुकी हैं और उन पर अपरिपक्व व्यवहार करने का आरोप लगा रही हैं। इससे कल तक भाजपा पर मुखर रहे और भाजपा को टेररिस्ट कह चुके आकाश जमीन पर आ चुके हैं। राजनीतिक पंडित इसे ईडी-सीबीआई के डर से जोड़़कर देख रहे हैं।
दूसरी बात कल तक चुनाव लड़ने के लिए इतने मुखर रहे धनंजय सिंह बसपा से टिकट कटने के बाद अब निर्दलीय भी मैदान में नहीं मिलेंगे। एकाएक इतने बड़े परिवर्तन आने का कारण अनुत्तरित है। वह ठाकुर हैं और उनको चाहने वाले हर जाति-धर्म के लोग हैं। माना जा रहा है कि इसका सबसे बड़ा फायदा भाजपा प्रत्याशी कृपा शंकर सिंह को ही जाएगा। इन्हें चाहने वाले ठाकुर-ब्राह्मण मतदाताओं के लिए भाजपा ही एक मात्र ठौर दिखेगी।
धनंजय सिंह के निर्दलीय भी मैदान से बाहर होने के पीछे एक डर की थ्योरी चल रही है। जब धनंजय जेल में थे, उसी दौरान एनआईए की जांच में धनंजय सिंह पर लारेंस विश्नोई को हथियार सप्लाई करने के आरोप लगे। जिस तरह से भाजपा बाहुबलियों पर सख्त रुख अपनाती है, यह आरोप उनका बड़ा अहित कर सकता है। संभव है कि इस वजह से भी उन्होंने अपने कदम पीछे कर लिये हों।
वहीं बेंगलुरु में भाजपा के चाणक्य अमित शाह की राजा भैया से मुलाकात के तार भी इससे जोड़े जा रहे हैं। माना जा रहा है कि पहले दो चरणों के चुनाव में ठाकुर मतदाताओं की नाराज़गी से भाजपा के मिशन 400 को झटका लग सकता है। ऐसे में भाजपा कोई भी खतरा मोल नहीं लेना चाहती और ठाकुर मतदाताओं को मनाने का जिम्मा राजा भैया को दिया हो। वैसे भी राजा भैया और धनंजय एक-दूसरे के बहुत करीब हों और उन्होंने कुछ खुसर-पुसर की हो।
वहीं दिल्ली में भाजपा के किसी बड़े नेता के सम्पर्क में धनंजय सिंह के होने की भी बात भी साथ-साथ चल रही है, जिससे उन्हें बड़ा आश्वासन मिला है। इसमें उन्हें भविष्य में कोई बड़ा राजनीतिक लाभ मिलने की संभावना है। इसी के आधार पर लोग संभावना जता रहे हैं कि श्रीकला धनंजय की भाजपा में वापसी हो सकती है और उन्हें बड़ा पद मिल सकता है।
फिलहाल यह चारों थ्योरी सिर्फ चर्चा में हैं। चैनल, अखबार, पोर्टल आदि अपने-अपने तरह से अनुमान लगा रहे हैं। इसका सही उत्तर तो बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्षा मायावती, पूर्व सांसद धनंजय सिंह, भाजपा के चाणक्य अमित शाह और राजा भैया के पास ही है। इनमें से सभी मझे हुए राजनेता हैं। पत्रकारों के प्रश्नों का उत्तर भी अपने ढंग से देते हैं। इन स्थितियों में यह कहा जा सकता है कि जो दिख रहा है, वह हकीकत नहीं है। जो हकीकत है, वह पर्दे के पीछे है। तभी तो कह रहा हूं ‘कुछ तो गड़बड़ है दया।’